बुधवार, 30 मार्च 2011

इतना तो रहम करो


सपने 
देखने की
आदी नहीं 
ये आँखे 

तुम इन्हें 
आसुओ से ही
भीगा रहने दो ,

क्या करोगे?
इस खाली दामन
में खुशियाँ भरकर ,
ये खुशियाँ भी 
मेरी ही तरह
तिल -तिल
जलकर ख़ाक
हो जायंगी |

क्यों
मेरे साथ 
अपने दिल के
गुलशन को 
ख़ाक किये 
जाते हो ,

जाओ
खुश रहो ,
आबाद रहो ,
इस दर्द को ,
मेरे नाम
ही रहने दो,

इतना तो 
रहम करो |

2 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

इस दर्द को ,
मेरे नाम
ही रहने दो,

बहुत खूब कहा है ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मन के भावों को खूबसूरती से लिखा है ..

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................