शनिवार, 26 मार्च 2011

आलौकिक स्नेह


मित्रों ! पिछले कई दिनों से बड़ी अध्यात्मिक पुस्तकों से जुड़ गयी हूँ और गीता के बाद अब भागवत , संकल्प ले कर पद रही हूँ, और सच कहू तो मुझे जितना अनुराग ईश्वर से कभी नहीं था अब होगया है और उसी अनुराग से ओत -प्रोत ये कवितायेँ सिर्फ शब्द नहीं मेरी आत्मा में बसा उनके प्रति अनुराग है ,समर्पण हैं , श्रद्धा और विशवास हैं | मेरा उनके श्री चरणों के प्रति अनुराग है | जीवन में कई बार हमें बड़ी अलग अनुभूतियाँ होती हैं और मुझे कई बार अपने राम के यथार्थ दर्शन किसी न किसी रूप में हुए हैं |इसलिए मेरा आत्मीय सपर्पण अपने राम के नाम |

नहीं खोज रही किसी वन में ,
नहीं खोज रही किसी तन में 
मेरे राजीव लोचन तुम्हे तो पाया है
सदा अपनी आत्मा में ,
बनाकर  उसे पावन धाम .

ये तन तेरा मंदिर ,
ये आत्मा तेरे चरणो की गुलाम .
प्रभो ,
कैसे चले आए हो ?
इस बावरी के ध्यान |

अभिभूत हूँ तुम्हे अपनी आत्मा में पाकर .
मेरे श्री राम 
सब कुछ तुम ही हो ,
मेरी भावना ,
समर्पण ,
पूजा ,
विश्वास 
अंतस का उजाला और 
मुक्ति का अंतिम धाम |

मेरे राम !
क्या मांगू ?
तन की इच्छा नहीं 
ये काया तेरी दासी ,
ये रूप चितवन तेरा गुलाम ,
धन,पुत्र ,सम्मान 
ये सब तो अब मेरी सोच से परे हैं |

बस सदा रखना 
अपने चरणों का 
गुलाम 
यही विनती करती हूँ |
मेरे 
श्री राम !

सीता - राम सहित सदा बसना 
और बनाना मेरी आत्मा को भी अपना धाम |
ओ मेरे राम ,
बस राम !

राम !

3 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

इश्वर की खोज वाह सारगर्भित रचना , आभार

Atul Shrivastava ने कहा…

ईश्‍वर के प्रति प्रेम और उसे पाने की ललक भरी सुंदर रचना।
शुभकामनाएं आपको।

Girish Kumar Billore ने कहा…

अति सुन्दर

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................