शुक्रवार, 25 मार्च 2011

ओ निर्मोही


मेरे रोम रोम बसे श्याम ,
वो निर्मोही जाने न तड़प मोरी ,
पल -पल तडपे ये बावरी .

केसे कहू कान्हा  ,
तुमसे ओ निर्मोही ,

मेरे मन के आँगन में गूंजे तेरी सी बंसी 
काहे दीवाना करे ,तू बजाके बसुरिया 
फिर  मन की बात समझे न ,
दिन में उंनीदी ,
जगाए रात -रात भर तुम्हरी बतियाँ |

4 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

यही तो उसकी खास अदा है…………।बेहद उम्दा भाव्।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

krishn ... ab to suno

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वियोग श्रंगार का भी अलग ही रंग होता है!

अनुभूति ने कहा…

धन्यवाद ,
आप सभी का आभार |

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................