घटा के साथ बरस जाओ,
ये भी जिन्दगी की है एक अदा ,
आँखे बंद करके भीगी मिटटी की खुशबू ,
अपनी साँसों में बसा लो
ये भी है बहती हुई हवा की एक अदा
,खुदा की कायनात में
हर लम्हा
हर पल है
एक अदा,
जब में टूट के बिखर जाती हूँ ,
हर बार ये कायनात ही मुझे देती जीने की नयी अदा .
दिल कहता है की तोड़ के सारे बंधन ,
में बह जाऊं इस भीगी हवा के साथ
ये है अल्हड सरिता की एक अदा .
यंहा सब कुछ बंधा - बंधा है .
लेकिन
सरिता की दुनिया में सब कुछ ,
हर सांस उस महकती हवा के करीब है
हर सांस उस महकती हवा के करीब है
हां जिन्दगी में तुझसे बेहद करीब हूँ ,
मैं मिटटी हूँ ,
और सब को छोड़ तेरी ही मिटटी में मिलना चाहती हूँ .
और सब को छोड़ तेरी ही मिटटी में मिलना चाहती हूँ .
ऐ कायनात
मुझे अपनी बाहों में थाम ले,
और ले चल इस बनावटी दुनिया से दूर ,
ग्लेशियर और पठारों की उस खामोश दुनिया में ,
जँहा कम से कम किसी के अपना ,
और किसी के पराया होने का गम तो न हो .
और किसी के पराया होने का गम तो न हो .
जँहा हो सिर्फ हवाओं की खुशबू और सरिताओ का जल ,
और रिम - झिम करती जिन्दगी |
-- अनुभूति
3 टिप्पणियां:
जी अदभुत
मुझे अपनी बाहों में थाम ले,
और ले चल इस बनावटी दुनिया से दूर ,
ग्लेशियर और पठारों की उस खामोश दुनिया में
जँहा कम से कम किसी के अपना ,और किसी के पराया होने का गम तो नहो .
जँहा हो सिर्फ हवाओं की खुशबु और सरिताओ का जल
और रिम -जिम करती जिन्दगी |
रम्य अभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
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