हां तुम मेरे आसपास हो, न हो
ये मुझे तेरी रूह की पाकीजगी का ,
तेरी आँखों से ढलते अश्को का
तेरी असीम चाहत का अहसास करा जाती हैं .
में नहीं जानती तुम सच हो या
एक खुबसूरत ख्वाब
जो भी हो जेसे भी हो
मेरे हमनवस !
में तुम्हे दुनिया से दूर अपनी आत्मा में छिपायें
जीती जाती हूँ ,
तुम्हारे लिए जीती हूँ !
बनती हूँ !
सजती हूँ !
खनकती हूँ !
सवरती हूँ !
और अपने ही आप से,
तुम्हारी आँखों से शर्माती हूँ
अपने ही आसपास के किस कोने में तिरछी निगाहों से
देखता में तुम्हे पाती हूँ
में जानती हूँ तुम कही नहीं हो ,
फिर भी में तुम्हारे ख्यालो में जीती जाती हूँ
सोचती हूँ तुम कहोगे अनु
कितना बोलती हूँ
,कभी तो खामोश रहो ,
में तुम्हे बिना बोले भी हर सांस
तुम्हारी इन आखों से पद लेता हूँ
हां जानती हूँ में तुम
बस कुछ लम्हा,
अपने ही आप से चोरी किये लम्हों का
एक खुबसूरत ख्याल हो तुम
इंसानों की दुनिया के तुम नहीं लगते मुझे
बस एक फ़रिश्ता नजर आया करते हो ,
जो मेरी ही तरह हैं अपने ही अंतस के दर्द से
मुस्कुराते हुए लड़ता हुआ ,
बस मजबूत सा दिखता लेकिन
आँखों से ढलते अश्को से अपने असीम स्नेह को
बया करता ,
जी करता हैं उन आखों से ढलता सारा दर्द में पी जाऊं
और सजा दू तुम्हारे लबों पे कभी न खतम होने वाली
एक मुस्कराहट
हां तुम्हरी इसी सरलता और सादगी की कायल हूँ
और जानती हूँ तुम यंहा कही नहीं ,कोई नहीं
कोई नहीं मेरे
हां मेरे ही अंतस का एक खुबसूरत ख्याल हो तुम
अनुभूति
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