बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

मेरे अंतस के ईशु तुम ही तो हो ,

"मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूं, इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूं; मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे सम्हाले रहूंगा। "
बाईबिल
में दीवानी हूँ गीता की ,भागवत की और बाईबिल की कुरान की ,मेरे लिए हर शब्द ईश्वर का असीम स्नेह अमृत हैं जो आत्म विभोर होने पे मेरी आँखों से बरसता हैं ,मेरा मालिक मुझे हमेशा अपना हाथ बड़ा थामे रहता हैं और असीम वेदना में भी ये कहता हैं अनु तुम बड़ी चलो में तुम्हे थामे हूँ |उसका ये अद्भुत अहसास जब मेरी आत्मा से फूटता हैं तो मेरी इबादत बन जाता हैं | बस ये ही हैं रसात्मिका |



मेरे कण -कण में ,
रोम -रोम में ,मेरी हर सांस में
तुम ही तो बसे हो ,
चाहें में तुम्हे राम कह के पुकारूं ,
या कहू मुरलीवाला
.या रब के कह के आवाज लगा लूँ
मेरे अंतस के ईशु तुम ही तो हो ,
पुकारती हु न, तुम्हे तो रोती हूँ दिवानो सी
लडती भी हूँ
और तेरा छिपा लाड -दुलार आँखों से बरसाती भी हूँ
कितने सरल हो न तुम ये सोचती हूँ
संसार क्यानहीं करता हैं तुम्हे पाने को,
मनाने को
और तुम इस पगली की एक पुकार पे चले आते हो,
देख नहीं पाते तुम मुझे किसी दुःख में
मेरे हाल पे लोगो को दुःख हुआ करता हैं
और में ख़ुशी से रोती हूँ
उसे क्या पता मेरे पास तो खुद तुम खड़े हो
मुझे थामे हो

क्या मांगू में!
मुझसे बड़ा कोई नहीं किस्मतवाला
जिसे तुने अपनेआप को दे निहाल कर दिया
मेरे रब !
मेरे मसीहा!
मेरे राम !

आप के कदमो मेंयूँ ही बेठे रहूँ
अनुभूति






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तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................