न रूप , न रंग,
न संसार
में तो रंगी हूँ
कान्हा जी !
आप के ही रंग में सौ बार
तेरी भक्ति का रंग मुझपे ऐसा चड़ा
कोई और रंग अब न चद पाए
अनुभूति
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