मेरे कृष्णा !
मेरे कोस्तुभ स्वामी !
तुझसे मेरा मन प्रीत करे ,
के झुक जाए इन कदमो में
में बलिहारी इन कदमो पे
मेरे कृष्णा !
जो साकार रूप में पाऊं
तो में चूम लू ये चरण तोरे कान्हा !
मेरे प्राण !
न्योछावर तुझपे मेरे तन ,मन, प्राण
दीजो पग -पग मुझे अपने अंनत ज्ञान का वरदान
मेरे रास्तो में मुश्किलें हैं कितनी पर जो राह 'चुनी
तुमने कान्हा जी
वो अद्भुत हैं ,
मेरा मार्ग देने वाले मुझे यूँ ही राह दिखाए चलना
तेरे स्नेह आशीष से शुरू करू में
ये नव जीवन संग्राम
बस ये ही कामना हैं मेरी तुझसे आज .
"श्री चरणों में अनुभूति "
मेरे कोस्तुभ स्वामी !
तुझसे मेरा मन प्रीत करे ,
के झुक जाए इन कदमो में
में बलिहारी इन कदमो पे
मेरे कृष्णा !
जो साकार रूप में पाऊं
तो में चूम लू ये चरण तोरे कान्हा !
मेरे प्राण !
न्योछावर तुझपे मेरे तन ,मन, प्राण
दीजो पग -पग मुझे अपने अंनत ज्ञान का वरदान
मेरे रास्तो में मुश्किलें हैं कितनी पर जो राह 'चुनी
तुमने कान्हा जी
वो अद्भुत हैं ,
मेरा मार्ग देने वाले मुझे यूँ ही राह दिखाए चलना
तेरे स्नेह आशीष से शुरू करू में
ये नव जीवन संग्राम
बस ये ही कामना हैं मेरी तुझसे आज .
"श्री चरणों में अनुभूति "
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें