भगवान श्री कृष्ण के साथ आत्मा से जोड़ी गयी प्रीत का सुख अनन्य हैं इसे समझना भोतिक लोगो के लिए थोड़ा मुश्किल |जिसने इस भक्ति और स्नेह की इस आलोकिक के संसार को समझा हें वो इस संसार से परे हो जाता हैं कृष्णा की इस बावरी अनुभूति की तरह !
बरसती फिजा के साथ ,
बरस रहे हैं फुल मेरी राहों में
में हूँ खोयी हूँ
इन खुबसूरत पन्हाओ में
खिली हैं जिन्दगी जेसे खिल गया हो
ग्रहण के बाद का चाँद
हां आज वो चाँद मेरे चेहरे पे खिला हैं
और उसकी असीम चांदनी ,
मेरी मुस्कुराहट बन सजी हैं दुल्हन की तरह
बसंती रंगों में झूल रहा हैं ये सावन
ये मतवाला योवन भी
लगता हैं आज जेसे सारी परीक्षाओं
का अंत कर दिया हो तुमने,
मेरे कोस्तुभ धारी !
केसा अद्भुत आनंद हैं!
ये केसे शब्दों से में कह दू !
मेरे कान्हा !
,हर भाव में लिपटे पड़े हो ,
अंतस में छुते हुए हो
मेरे कृष्णा !
इन अखियन से देखे कोई तो समझे ,
आत्मा से महसूस करे तो जाने
तेरे चरणों का स्पर्श केसा अद्भुत होगा |
जो सुख पाया मेरे राम !
के चरण धोकर
ने वो ही सुख में भी पा जाऊं !
डरती हूँ अपने ही कृष्णा और राम
की असीम प्रीत को में
नजर न लगा दूँ में
इसलिए कान्हा !
बन राधिका में
आज तुम्हे अपनी ही अखियन,
के काजल से ये काला टिका
श्री चरणों में अनुभूति
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