मेरे कृष्णा !
मेरे कोस्तुभ धारी !
ये मनमोहक छबी तुम्हारी और
एक सुहानी भोर
सजी हैं फूलो की महक से
और में भीगी हूँ अपने अंतस तक
उन मीठी आत्म अनुभूतियों में
कभी नहीं लगता तुम नहीं हो ,
ऐसा लगता हैं यही सिमटे हो मुझमे
ये सुकून से भरी भोर ,
मेरे कृष्णा !
ऐसी को भोर न हो ,
जिसमे तेरी मुरली की धुन
और अनुभूति न हो
तुम्हरा असीम स्नेह भी मुझे ,
आनन्दित करता हैं
और क्रोध भी कृष्णा ,
मुझमे नहीं लगता कोई भेद ,
तुझमे और मुझमे
दोनों एक हैं अपने अंतस तक
बावरी हूँ में
कान्हा तुहारी
मेरे कृष्णा !
मेरी दुनिया सिमटी हैं तुझमे बस
जेसे तेरी मुरली में बसी हो सरगम
मेरी भोर का सूरज भी तुम और
शाम की रोती अखियन को पनाह ,
देता सुकून भी तुम
दिन का हर ख्याल ,हर शब्द
हर बात भी तुम
हां तुम ही तो बसे हो,
इस माथे के सुर्ख कुमकुम में के सूरज में
मुझमे मेरे अंतस में ,
मेरे अगाध विशवास में ,
मेरे अडिग सत्य में
मेरा स्वपन भी तुम ,
मेरा यथार्थ भी तुम,
इन लबो पे खेलती मीठी मुस्कुराहट भी तुम ,
इन अखियन से गिरता नीर भी तुम
मेरी दुनिया के चारों और
और में इस दुनिया में होकर भी नहीं हूँ
में तो बस सोच के मुस्कुरा देती हूँ ,
अपनी राधा को कही
तुम्हारी मासूम सी बतिया
वो अपना हक़ जताना ,
वो गुस्सा ,वो अपनत्व ,
वो असीम लाड वो आदेश की हुकूमत
मेरी दुनिया सिमटी हैं बस कुछ ही शब्दों में
कुछ ही खुबसूरत लम्हों में
में हां सिर्फ एक शब्द में
मेरे कोस्तुभ धारी !
मेरे नील कंठ !
मेरे कृष्णा !
मेरे राम !
श्री चरणों में नमन
अनुभूति
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