एक खुबसूरत शाम का जादू ,एक मासूम सी मुस्कुराती शाम ,
अपनी ही नादनी पे अटखेली करती एक शाम
लता जी की आवाज के साथ
"अजी रूठ कर अब कँहा जाइयेगा ,
जँहा जाइयेगा हमें पाइयेगा "
खुबसूरत एहसाओं के साथ
अनुभूति
निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................
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