सोमवार, 27 जून 2011

ए कायनात तेरी पनाहों में

कृष्णा ,
देख रही हूँ हिसाब तेरी रहमतो का
मागते हैं रिश्ते हिसाब सालो का ,
सालो से जिनके पास देने को कभी कोई,
सपना रहा
वो मागते हैं
आज मेरी इन से आँखों से
मेरे  सपनों का हिसाब
मेरी रूह का चेन और सारे एहसास तो

गिरवी
कान्हा तोरे पास ,
रूह का असल सूद मेरे पास, केसे कहूँ?
किसे कहू मेरा अंचल तो खाली ही पडा हैं ,
मिटने के बाद भी सहानुभूति और स्वार्थी का इल्जाम  धरा हैं  
कीमत में बंधा हैं हर बंधन
केसे कहू ये कभी
सात फेरो का बंधन
कभी सांसो का
दोनों का मोल अनमोल
बाँधना चाहे हर कोई अपने स्वार्थ से
कई हालत को मज़बूरी समझ खेल जाए ,
रिझा ले मन अपनी रहमतो से
और कोई हालत ही ऐसे कर दे की मजबूर हो जाएँ
मुझे जीना हैं लड़ना हे जिन्दगी तुझसे
अब नहीं कोई सौदा ,
मेरे कृष्णा
जो होना था हो गया
बस होगया तुम्हारे साथ
माटी की गुडिया से बना दो,
अब मुझे पत्थर का इंसान
खिलना हैं इस गुलशन में
चहकना हें मुझे अब डाल-डाल
मुझे ले चल कुदरत अपनी पनाहों में
एक बार नहीं लोटना हैं
मुझे इन झूटे सौदों में ,
में मिट जाना चाहती हूँ
कायनात तेरी पनाहों में
ले ईश्वर का साथ
स्वीकार अपनी चरणों में
रूह की ये प्रार्थना एक बार
अनुभूति

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