तूफ़ान के बाद की ख़ामोशी
ज्यादा तबाही दिखाती हैं
एक खामोश ,सरल सी,
दिखने वाली लहर भी तूफ़ान उठाती हैं |
शांत दरिया की वो खुबसूरत मौज
जो कभी साहिलों के गीत गाती थी
आज तबाही का ये आलम दिखाती हैं
तबाही के बाद अब कुछ नहीं बचा ,
खंडहर हो गए बुत और इंसान
सब कुछ खाली हैं दिलो की तरह
क्यों आते हैं तूफ़ान ,
कभी शांत दरिया किनारे बैठ के सोचना
कही ये किसी लहर की बगावत तो नहीं |
अनुभूति
3 टिप्पणियां:
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
बहुत खूब, लाजबाब !
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