शुक्रवार, 27 मई 2011

तेरी विशालता , मेरे राम !

मेरे राम ,

जितना स्नेह दिया , जितना दिया स्वप्न संसार 
केसे चुका सकुंगी में ,कहो आप का ये आभार ?

गीत दिए जीवन को ,प्रीत दी मन के सुने आंगन को 
एक बार नहीं कहता क्यों मन इन चरणों से उठाकर गले लगाने को ?


जितना सरल ह्रदय आप का ,
उतनी ही तन  कठोर हैं आप का
सारा स्नेह भी मेरे नाम 
सारा त्याग भी मेरे नाम 

एक तरफ स्नेह का सागर
और दूजी तरफ विष का प्याला ,
भी इस अहिल्या के नाम 


प्रभु ,आप की लीला आप ही जानो ,
में जानुं सिर्फ सेवा का नाम ,
जो मन हो जाए दो दे दीजो 
मुझे अपनी चरण सेवा का काम 


इस बेबसी की जिन्दगी में करू क्या ?
नहीं लूँ अगर तेरा नाम ,जीयू क्या ?

मरना मंजूर  नहीं तेरी आँखों को ,मेरे राम !
जी जाने को ,नयी चेतना को जगाने का देते हो जो ज्ञान ,मेरे राम !

 हर ज्ञान स्वीकार ,करू धारण में शिरो धार्य ,
 देखू नित में आकाश , करू याद सूर्य प्रणाम |

मुझे भी शक्ति दीजो ,ज्ञान दीजो बस ये ही मांगू |

अनुभूति 

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