प्रभु ,
मेरे राम
मेरी भक्ति , मेरी श्रद्धा के फुल ,
में नहीं जानू स्नेह की और कोई रीत,
न मांगू तुझसे कुछ
मांगू तो मांगू तेरी मुस्कुराहटो,
और संसार में तेरे नाम का उजाला .
मेरे राम ,
मन में तेरे प्रति कोई भाव नहीं स्वार्थ का ,
मोह का , तो उसे अपनी आत्मा से निकाल
देना मुझे इस लोक से उस लोक बस
अपने चरणों में ही प्रणाम करने की कृपा
स्नेह होता तो मांग लेती चरण सेवा का अधिकार ,
पर सब कुछ सहानुभूतियों में बदल गया तो क्या कहू ?
जो जेसा तेरा आदेश , मुझे सब स्वीकार |
अनुभूति
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