ओ कान्हा
जब से तुम गए ,
अपनी राधा के बृज से ,
सब कुछ सूना तुम बिन ,
दिन ,रात , भोजन,
सब त्याग तुम बिन
क्या कहे राधा तुम्हे अपने मुख से
तुम तो बिन बोले ही,
सब समझो अपने मन से
केसे समझाऊ इस राधा रानी को
नहीं माने दिन भर ,
रात भर जागे
तुम्हारे चरणों में ,
तुम्हारी अगवानी में
तुम जो दे गए आदेश
भक्ति का ये मिट जायगी
अब तो कन्हा जागो
उठो स्वीकार करो भक्ति,
इस राधा रानी की |
क्यों दे गए तुम स्वार्थी होने का ये आरोप
इस दीवानी को ,
खुद ही समझाओ
में तो हारी तुम्हारी इस दीवानी से
अब तो जागो कान्हा !
अनुभूति
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