मेरे प्रभु !
वेदनाओ के महासागर में ,
एक नया तूफ़ान कँहा से घिर आया हैं
विचलित मन ,
थाह पाए भी तो कैसे ..
इस जीवन में ,
बड़ी सरलता से अपनी ही तरह मान कर,
बिना तुम्हारा अस्तित्व जाने ही ,
मेरे प्रभु !
मैंने समर्पित कर दिया ,
श्रद्धा ,विशवास और समर्पण ,
कितना अलौकिक था |
ये सरल रूप तुम्हारा .
एक सरल मित्र रूप में ,
भयभीत हूँ , तुम्हे साक्षात पाकर
मेरे प्रभु !
मैं एक साधारण इंसान हूँ
तुम्हरा ये तेजस्वी प्रकाश ,
और अलौकिक प्रत्यक्ष दर्शन
मैं सह नहीं पा रही ,
क्या मुझे ऐसा भी कुछ जीवन में
मिलेगा ?
तुम्हारा दर्शन इस जीवन में
मुझे होगा ,कभी ये तो स्वप्न से भी परे था |
वेदनाओं के महासागर में
ये कोन सा यथार्थ सत्य मेरे सामने लाकर खड़ा कर दिया हैं |
मेरे प्रभु !
विचलित हूँ , भयभीत हूँ ,
मेरा ईश्वर मेरे सामने हैं ,
शायद सालो की मेरी भक्ति का ये परिणाम हैं क्या ?
मेरे प्रभु !
तुम्हारा वह साधारण रूप ही अच्छा था |
मेरे लिए |
अज्ञानता में बड़ा सुख है
इसका आज बोध कर पाई हूँ मैं .
तब मैं बड़ी सहज और सरल थी
अब ठंडी पड़ी हूँ ,
सोच रही हूँ -
स्वीकार करू ये सत्य!
क्या कर पाउंगी तुम्हारे विराट रूप का दर्शन ?
सह सकूंगी तुम्हारा वह तेज !
नहीं शायद
मैं एक साधरण इंसान हूँ
अपने ही अंतस से लड़ता हुआ
क्या होगा ये मेरे भाग्य में ऐसा कभी ?
कि तुम्हरा अलौकिक साथ , स्नेह ,विश्वास
और श्रद्धा होंगे मेरे साथ भी |
होगा मेरे मस्तक पे तुम्हारे
स्नेह और आशीष का हाथ भी
ये सोच कर ही विचलित हूँ..
प्रभु मेरे !
आज मुझे यकीन है तुम मेरे साथ खड़े हो
मेरे राम !
मेरे जीवन का सम्पूर्ण समर्पण होगा तुम्हारे ही नाम ,
बस अब मुख से लेते -लेते तुम्हारा नाम ,
निकल जाए मेरे प्राण,
ओ मेरे राम !
-- अनुभूति
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