गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

ओ मेरे राम !





मेरे प्रभु ! 

वेदनाओ के महासागर में , 
एक नया तूफ़ान कँहा से घिर आया हैं 
विचलित मन ,
थाह पाए भी तो कैसे ..

इस जीवन में ,
बड़ी सरलता से अपनी ही तरह मान कर, 


बिना तुम्हारा अस्तित्व जाने ही ,
मेरे प्रभु ! 
मैंने  समर्पित कर दिया ,
श्रद्धा ,विशवास और समर्पण ,

कितना अलौकिक था |
ये सरल रूप तुम्हारा .
एक सरल मित्र रूप में ,
भयभीत हूँ , तुम्हे साक्षात पाकर 

मेरे प्रभु ! 

मैं  एक साधारण इंसान हूँ 
तुम्हरा ये तेजस्वी प्रकाश ,
और अलौकिक  प्रत्यक्ष दर्शन 
मैं सह नहीं पा रही ,

क्या मुझे ऐसा भी कुछ जीवन में 
मिलेगा ?

तुम्हारा दर्शन इस जीवन में 
मुझे होगा ,कभी ये तो स्वप्न से भी परे था |

वेदनाओं के महासागर में 
ये कोन सा यथार्थ  सत्य मेरे सामने लाकर खड़ा कर दिया हैं |

मेरे प्रभु !
विचलित हूँ , भयभीत हूँ ,
मेरा ईश्वर मेरे सामने हैं ,
 शायद सालो की मेरी भक्ति का ये परिणाम हैं क्या ?

मेरे प्रभु !
तुम्हारा वह  साधारण रूप ही अच्छा था |
मेरे लिए |
अज्ञानता में बड़ा सुख है
 इसका आज बोध कर पाई हूँ मैं .

तब मैं  बड़ी सहज और सरल थी 
अब ठंडी पड़ी हूँ ,
सोच रही हूँ -
 स्वीकार करू ये सत्य!
क्या कर पाउंगी तुम्हारे विराट रूप का दर्शन ?
सह सकूंगी  तुम्हारा वह  तेज !

नहीं शायद
मैं  एक साधरण इंसान हूँ
अपने ही अंतस से लड़ता हुआ

क्या होगा ये मेरे भाग्य में ऐसा कभी ?
 कि तुम्हरा अलौकिक साथ , स्नेह ,विश्वास 
और श्रद्धा होंगे मेरे साथ भी |

होगा मेरे मस्तक पे तुम्हारे
स्नेह और आशीष का हाथ भी
ये सोच कर ही विचलित हूँ..

प्रभु मेरे !

आज मुझे यकीन  है तुम मेरे साथ खड़े हो

मेरे राम !
मेरे जीवन का सम्पूर्ण समर्पण होगा तुम्हारे ही नाम ,
बस अब मुख से लेते -लेते तुम्हारा नाम ,
निकल जाए मेरे प्राण, 
ओ मेरे राम !

-- अनुभूति 

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