शमा जलती रही ,
और
बूंद -बूंद अश्क
ढलता ही रहा .
मैं तेरे इन्साफ की ,
दुहाई देती रही ,
सोचती थी ,
सबका इन्साफ,
करने वाला
मेरे लिए
क्या सजा मुक़र्रर करता है ?
उसकी सजा का
कोई अंत ही नहीं था ,
क्योकि में हँस के,
ये सजा सहती रही ,
वो मुस्कुराता रहा ,
और में खामोश शमा सी,
जलती ही रही |
शमा जलती ही रही ,
और बूंद - बूंद अश्क,
ढलता ही रहा,
और वो यूँ ही हँसता रहा |
2 टिप्पणियां:
ओह्…………दर्द ही दर्द भरा है।
उसकी सजा का
कोई अंत ही नहीं था ,
क्योकि में हँस के,
ये सजा सहती रही ,
वो मुस्कुराता रहा ,
और में खामोश शमा सी,
जलती ही रही |
शमा जलती ही रही ,
और बूंद - बूंद अश्क,
ढलता ही रहा,
और वो यूँ ही हँसता रहा |
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