शिकायत हैं उनको की,
में दर्द पे कविता नहीं कहती !
केसे कहे उन्हें के दर्द का
तो समन्दर हम साथ लेकर जीते हैं |
जो नहीं हैं उसको तो हम ढूंढा करते हैं ,
कहते हैं खोजने से खुदा भी मिल जाया करता हैं |
जानती हूँ,
स्नेह के अलावा भी,
बहुत कुछ हैं ऐसा हैं ,
जिसपे कविता लिखी जा सकती हैं |
पर क्या करू?
मेरे दोस्त, भूख और गरीबी पे सिर्फ,
कविता लिखने से वो खत्म होती तो बात ही क्या थी |,
ये सब तो हमारे पास हैं न जाने कब से !
इसीलिए
तो में लिखती हूँ
कविता स्नेह पर,
जो हमारे पास कम होता जा रहा हैं |
जो अभी खत्म नहीं हुआ,
उसे रोका जा सकता हैं|
और जो खतम हो चुका हैं ,
उसे कविता लिखकर,
नहीं रोका जा सकता मेरे दोस्त!
क्योकि कविता लिखने से ,
भूखे को रोटी नहीं मिलेगी
हां लेकिन,
एक मीठी कविता सुनने,
या,
पड़ने से कुछ पल के लिए वो
अपनी भूख और गरीबी भूल कर,
कुछ देर ही सही मुस्कुरा तो लेगा |
7 टिप्पणियां:
bahut umdaa
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
Dnywad didi
पत्ते भी टूट टूट के बिखरे इधर -उधर
पहले सा सायादार हमारा शजर कहाँ
बहुत खूबसूरत रचना
बहुत खूबसूरत रचना| धन्यवाद|
अच्छे भाव
और जो खतम हो चुका हैं ,
उसे कविता लिखकर,
नहीं रोका जा सकता मेरे दोस्त!
क्योकि कविता लिखने से ,
भूखे को रोटी नहीं मिलेगी ....
बहुत अच्छी कविता.....सच्चाई को वयां करती हुई
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