सपने
जब सत्य के धरातल पर ,
सत्य का धरातल यानी दुनियां ,वास्तविकता }
आकर टकराते हैं,
और टूटते हैं ,
तो बहुत तकलीफ होती हैं |
ये जान कर भी,
मन देखना चाहता है सपनें !
लगता है कितनी कडवी हकीकत,
पर क्या करे?
दुनियां ही कुछ इसी तरह की हैं |
पर मन है कि
सपनो के पीछे भागा फिरता है |
वो कुछ नहीं देखना चाहता,
सिर्फ अपने ही नजरियए से.
दुनियां को देखना चाहता हैं .
और, जब सपने टूटते हैं तो तड़प उठता है |
कैसा है ये बांवरा मन ?
हर बार दुनिया के,
पिंजरे से उड़ कर
बस अपनी ही हांका करता है |
डरते डरते उड़ना तो चाहता है.
पर अनजाने भय से,
सहम -सहम कर
बढता है |
और सपना पूरा हो,
इससे पहले ही सवेरे की आँख खुल जाती है ,
और जिन्दगी लौट आती है .
अपनी हकीकत में |
और वो सपना दम तोड़ देता है.
उन्ही उनींदीं आँखों के पीछे
और सुबह,
चाय की प्याली और श्रीमान के साथ ,
मैं कह रही होती हूँ -
हे ईश्वर !
अच्छा हुआ
ये एक सपना था
धीरज !
10 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
उम्दा रचना.
जो टूट जाता है , सपना ही रहे ...
सुन्दर भावाभिव्यक्ति !
bahut hi achha laga aapko padhna
baho achchha
सुन्दर वर्णनशैली ..
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/03/blog-post_12.html
sunder rachna badhai
आप सबको होली की बहुत बहुत शुभकामनायें ।
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