प्रिये ,
कितनी खूबसूरत हो तुम,
कितनी खूबसूरत हैं तुम्हारी मुस्कुराहटें
और
वो निस्वार्थ चाहत ,जो मेरी बंदगी करती हैं |
मेरी निगाहों से जो चाहत
तुम्हारे लबों पे मुस्कराहट बन कर बिखर जाती हैं |
क्यों छुपाना चाहती हो तुम ,
अपने ह्रदय की उस अप्रतिम मुस्कराहट को ?
केसे छुपा सकोगी तुम अपनी लहराती जुल्फों में ,
मेरी चाहत को
प्रिये ,
अपने लबों से कहो न कहो पर मुझे यकीन हैं ,
मैं मुस्कराहट बन
यूँ ही तुम्हारे लबों पे खिलता रहूँगा |
यूँ ही तुम्हारे लबों पे खिलता रहूँगा |
7 टिप्पणियां:
bahut pyari kavita.....
रमणीय काव्य-अभिव्यक्ति
खूबसूरत एहसास
Dhnyvad didi
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बहुत सुन्दर अहसास्।
बहुत प्यारी रचना..
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