समझी थी तुमको मैं
अपनी ही तरह
सीधा सादा ,
तुम जो ज्ञान और अनुभव
समंदर
और मैं उसी सागर से बने
बादलों से टपकती
एक नन्ही सी बूंद !!
कितनी आसानी से
तुमने समझा दिया
अपना व्यक्तित्व
अपने आप मै ,
अपनी आत्मा में
तुम्हे बिना तुम्हारी
विशालता जाने ही
अपने आप में बसा लिया था मैंने..
और, जाना है अचानक आज -
रूप ,रंग ,अस्तित्व
तुम्हारा व्यक्तित्व ...!
सोचती हूँ
कैसे करूँ
अपने आप का सामना .
ये अनजाने में ही
क्या मुझको मिल गया ..
बहुत छोटी हूँ
तुम्हारे इस अन्त-हीन ज्ञान के आगे मैं,
नहीं समझ पा रही क्या करूँ ,
क्या कहूँ अपने आप से ?
-- अनुभूति
1 टिप्पणी:
एक रूप एक संसार एक मान एक अपमान,
आत्मा का हो विच्छेदन करुणा का नित भान,
सुगन्ध को बताया नही जाता महसूस किया जाता है,
उसी तरह से तुम्हारी भावनाओं को देखा नही समझा जाता है,नित नये रूप में तुम्हारा होता है सामना,आगे ही आगे बढो उन्नति हो तुम्हारे कदमों में उस परमपिता परमात्मा से यही है मेरी कामना.
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