गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

तुम्हारा स्नेह -पाश



तुम्हारा हर शब्द मेरी आत्मा तक पहुँचता है . 
हर शब्द मुझे झकोर -झकोर के कहता है  कि

मैं तुम्हारे लिए ही मन के आंगन से निकला हूँ .
हर बार जवाब मिलता है  मुझे,
मेरा तुम्हारे शब्दों से ,

तुम्हारी वेदना,
और सब कुछ कह के भी चुप रह जाने की आदत से 

मैं  तुम्हारे इसी विश्वास के साथ बंधी हूँ 
और सदा बंधी रहूंगी|

तुम्हारे इस स्नेह पाश में सदा बंधी रहूंगी |

-- अनुभूति 

9 टिप्‍पणियां:

अमिताभ मीत ने कहा…

Achchaa hai

PURNIMA BAJPAI TRIPATHI ने कहा…

शब्दों की जादूगरी भावनाओं का ज्वार

स्नेह के बंधन को बांधे बार बार. सुंदर प्रस्तुति

संजय भास्‍कर ने कहा…

एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

kunwarji's ने कहा…

जी बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति..

जब भी गुजरते है इस एहसासों के गलियारे से..

हर सांस एक एहसास क्यों हो जाती है!

कुंवर जी,

अनुभूति ने कहा…

धन्यवाद |

Girish Kumar Billore ने कहा…

लक्ष्मी जी
एक संक्षिप्त पर प्रभावी अभिव्यक्ति

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Prem ke bandhan se nikalna aasaan nahi hota ... achee rachna hai ...

रविंद्र "रवी" ने कहा…

बहुत बढ़िया!

prithwipal rawat ने कहा…

bahut khoob!

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................