रविवार, 24 जनवरी 2010

एक सपना खुली आँखों का


मै भी देखती एक सपना खुली आँखों से,
की वो मोड़ एक बार फिर आजाये ,
हां उस रात की तरह सजी हु मै
नयी दुल्हन की तरह और तुम साथ हो मेरे
पास हो बहुत फिर भी अहसासों से दूर नजर आते हो ,
इसलिए देनी पड़ी है शब्दों को जुबा
उसी महकती रात की तरह मै बन जाना चाहती हूँ नयी दुल्हन
मेहँदी के खुशबु वाले महकते हाथ और महकते मोगरे मै
एक बार फिर महक जाना चाहती हूँ मै ,
सूर्ख रंग मै रंगी हुए
,अपने आप मै जीवन के सारे रंगों को समेटे हुए एक बार फिर ...............
आँखे बंद करती हूँ तो खो जाती हु
वही घंटो तुम्हारे काँधे पे सर रखे तुम्हे सुनते हुए
कितना ,खुबसूरत है था ना वो पल ,
सब कुछ मन की कही फिर भी उन अनकही सी
गुनागुना रही हूँ मै,
उन पलों को सुनहरी धुप मै नदी के किसी किनारे तुम्हारे साथ
हां मेहंदी लगे हाथो मै ,हां तुम्हारे हाथो मै हाथ ।
पहले कभी कह नहीं पायी ,हां घूँघट उठाने से पहले की मुह दिखाई मांगना चाहती हूँ आज तुमसे आज ,
सब कुछ है पर सुनी पड़ी है कदमो की आहटे
इसीलिए छम -छम करती पायलों केसाथसब कुछ खनकता हुआ महसूस करना चाहती हूँ तुम्हारे साथ
हां इसीलिए मांगना चाहती हूँ पायले,
एक बार फिर बन जान चाहती हूँ दुल्हन तुम्हारे साथ
तुम तो सब कुछ भुलाए बैठे हो ,तो फिर क्यों ?
ना गुन्गुनालू ये पल दोबारा तुम्हारे साथ
सरिता -सागर

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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................