शनिवार, 14 मई 2011

जीवन सत्य की देहलीज

वो पूनम का चाँद और तेरा ये रूप ,
ख़ामोशी में गूँजता गोरी तेरी आँखों  का गीत ,
तेरा लहराता आँचल और मतवाले काजल का जादू
  ये मौन  निमंत्रण स्नेह का  ,प्रिय को 
     खामोश रहके भी दीवाना करते हैं 
       हाथों का चुड़ा , और पेरों की जंजीर
       तेरे माथे लगी वो कुमकुम की टिप
होठों की मुस्कुराहट ,
वो शर्माने की अदा
वो घुंघट !
ये सब तेरा उनकी होने का दावा करते हैं |
सब कुछ सूना हैं जो रूठे बेठे हैं ठाकुर  तुझसे गोरी
ये चांदनी भी अधूरी हैं ,
और तेरा चाँद चेहरा भी सूना हैं प्रियतम के 
अधरों के बिन .
वो कभी न तुझसे मानेंगे ,
ये रूप योवन कुछ नहीं कुछ देरमें  मिट जाना हैं 
साथ कुछ नहीं 
आत्मा को जाना हैं ,
गोरी छोड़ योवन अब आजा जीवन सत्य की देहलीज 
इस आत्मा से उस आत्मा का साथ हैं साचा बस |
छोड़ सोलह सिंगार ,
तेरे ठाकुर तुझको चाहे तेरी आत्मा से
ओ दीवानी !
अब तो समझ , 
समझा रहा मन 
माने क्यों न आत्मा अब तेरी !

अनुभूति



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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................