मेरे कृष्णा !
तुम भी हो हठी ,तो में भी हूँ हठी
सब कुछ सिखा मेने तुझसे ही कृष्णा !
तुझ से सिखा तुझे पुकारना
लड़ना ,झगड़ना
और स्नेह सागर इस जीवन का
तुम काहे विचलित हो मुझे ऐसे देख ,
काहे घबराओं अपनी ही आत्मा के सत्य से
तुमसे ही सिखा सत्य परेशान हो जाए पर पराजित नहीं ,
जो दिया तुमने दिया ,मेने हँस के इन होठो पे सजा लिया
फिर काहे की चिंता मेरे श्याम !
तुम ही कहो पुकारो मुझे ,जब तुम बसे इन अखियन में
तो फिर क्यों डर म्रत्यु का इस संसार का
में मुक्त ,तुम भी मुक्त फिर काहे की चिंता
एक दुसरे में समाये हैं हम दोनों
मेने किया हैं सब कुछ अर्पण से
मेरा हर दुःख, कष्ट, सुख, खुशी,
तुम ही हो मेरे कृष्णा !
इस संसार सी झूटे सारे बन्धनों से मुक्त हो पाया हैं मेने तुम्हे अंतस में
तुम भी हो हठी ,तो में भी हूँ हठी
सब कुछ सिखा मेने तुझसे ही कृष्णा !
तुझ से सिखा तुझे पुकारना
लड़ना ,झगड़ना
और स्नेह सागर इस जीवन का
तुम काहे विचलित हो मुझे ऐसे देख ,
काहे घबराओं अपनी ही आत्मा के सत्य से
तुमसे ही सिखा सत्य परेशान हो जाए पर पराजित नहीं ,
जो दिया तुमने दिया ,मेने हँस के इन होठो पे सजा लिया
फिर काहे की चिंता मेरे श्याम !
तुम ही कहो पुकारो मुझे ,जब तुम बसे इन अखियन में
तो फिर क्यों डर म्रत्यु का इस संसार का
में मुक्त ,तुम भी मुक्त फिर काहे की चिंता
एक दुसरे में समाये हैं हम दोनों
मेने किया हैं सब कुछ अर्पण से
मेरा हर दुःख, कष्ट, सुख, खुशी,
तुम ही हो मेरे कृष्णा !
इस संसार सी झूटे सारे बन्धनों से मुक्त हो पाया हैं मेने तुम्हे अंतस में
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें