इस दुनिया में पल-पल जीना हैं,
सबसे मुश्किल काम .
कित लगाऊं ध्यान !
जँहा देखू अपने अंतस
के रोम -रोम में हर अनुभूति
तेरी में पा जाऊं
सब कुछ शांत हैं पर मन में
एक आह उठी हैं अपनी सी
केसे कहूँ ,
मेरे राम !
ये किस आह की ,
किस अंतस के दर्द की बैचेनी सी !
मेरे राम !
तुम ही हो मेरे भोले -भाले नील कंठ ,
सारे संसार का विष ,
अपने कंठ में समाने वाले
इस संसार को हर विपदा से बचाने वाले ,
मुझे भी अपनी ही तरह बनाओ
तुम ही हो मेरे भोले -भाले नील कंठ ,
सारे संसार का विष ,
अपने कंठ में समाने वाले
इस संसार को हर विपदा से बचाने वाले ,
मुझे भी अपनी ही तरह बनाओ
इन सुनी वादियों का मोसम
अपनी बंसी की धुन से बदल जाओ
हां अपनी राधा ,गोपियन संग रास रचा जाओ
ये सूना -सूना आँगन मन को नहीं सुहाता
तुहारे अधरोंकी मुस्कुराहट देखे बिन
दिन नहीं कट पाता,
मेरे कोस्तुभ स्वामी !
छेड़ो तुम आज कोई मधुर सरगम
के देख तुम्हारे क्रोध , आवेश ,आदेश को ,सत्य को
मान बीत जाएँ यूँ ही मेरा जीवन |
"आप के श्री चरणों में अनुभूति " संसार
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