ओ कान्हा जी !
ये केसी हैं!
अँधेरी रात ,
बिजलियाँ कोंध रहीं ,
घनघोर घटा बरस रही
मन को भयभीत कर रही
न जाने कितनी ही आशंकाएं मन में उठा रही
आत्मा राम नाम के अक्ष्णु विशवास पे अड़ी हैं
क्यों लगे मुझे आज इतनी रात
मेरा कान्हा !
किसी कारगर में जनम ले रहा ,
क्यों ये अद्भुत रूप कान्हा ,
आज मुझे दिखा हैं तेरा
आज मेरी भागवत पूरी हुयी हैं
कान्हा जी !
मेने देखा हैं स्वप्न
में जो तुम्हरा ये बाल रूप तुम्हरा
पता नहीं आत्मा कहती हैं
तेरे श्री हरी तुझपे आज प्रसन्न हुए
नहीं समझ इस तुच्छ बुद्दी को
क्या सच हैं ?क्या होगा ?
मेरे कान्हा मुझे शक्ति दो लड़ सकू में
भी अपनी आत्मा के सत्य के लिए अपने ही मन से
मन तोड़ रहा ,पर संकल्प मुझे मजबूत कर रहा मुझे
हां बड़ी शक्ति हैं तेरे नाम में मेरे आराध्य! मेरे राम !
तेरा भक्त कभी झुटा न हो इस संसार में
इतनी सभी को शक्ति देना
और मुझे जीवन की नयी दिशा देना |
हां मुझे कभी अपने साकार रूप के दर्शन भी देना !
मुझे नहीं मालुम में लिख सकुंगी अब कभी
आप के श्री चरणों में कान्हा जी !
आगे ,पिच्छे की कोई गति में नहीं जानू
जो जाने कान्हा आप जानो ,
सब कुछ तेरी शरण
मेरे कोस्तुभ धारी !
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