केसा तेरा अद्भुत स्नेह!
जो झलके तेरे कण -कण से
तेरा दर्द तेरी पीड ,
तेरा पश्चाताप सहा न जाए
बस सोचु ये ही की ,
जो सोचु में वो सोचे तेरी मूरत भी
ओ कान्हा ,
सोचा नहीं था पभु किसी की पीड़ा ऐसे भी सह लेते हैं
देखा हैं साक्षात् तुझे जाना हैं ,
ओ कान्हा !
मेरे पास तेरे स्नेह और विशवास के सिवा
दूजा नहीं कोई जीवन का आधार
पीड़ा दे एक बार ही इस देह को ख़ाक कर दो
एक बार इन चरणों में मुझे स्वीकार कृतार्थ कर दो .
मुझसे सही नहीं जाती ये स्नेह पीड तुम्हारी
या तो इस दासी की बाँध लो इन कदमो से
या कर दो अपने वचन से मुक्त एक बार
तिल -तिल की ये अग्नि ,
चिता से भी घनघोर प्रभु !
किसकी कहूँ , किसको लिखू ?
पाती ये , तुम्हारे सिवा ओ मेरे कन्हाई !
तुम तो सागर स्नेह का
में नन्ही सी बूंद नहीं समझ सकुंगी,
तेरा अद्भुत स्नेह
जेसा तुमने चाह में ढलती जाउंगी
क्या कहूँगी ,क्या सहूंगी
एक बार बिना मिले ही मर जाउंगी |
और कोई पश्चाताप तो प्रभु !
तुम ही बता ला दो
इससे बड़ी कोई और तड़प हो ,
तो वो दिला दो
केसा मार्ग दियातुमने ?
मुझे ओ कन्हाई !
जिसने जीवन की हर दुविधा मिटाई ,
इतना तो सोभाग्य मिला हैं |
बिन कहे भी प्रभु तेरी हर बात को समझने का
एहसास मिला हैं ,
कह देते तो पीड़ा न होती ,कन्हाई
ये केसी अजीब भक्ति मेरी तुने बनाई ?
इस लोक से उस लोक खड़े हो ,
केसे समझाऊ फिर भी कितने रोम -रोम में बसे हो !
मेरा तन ,मन आत्मा जो तेरे चरणों के काम ना आये
क्या करू उस तन ,मन को लेकर ओ कन्हाई
इसिलए तो सब ख़ाक किया हैं
तेरी मूरत के आगे बैठ बस बहाऊ नीर
जब जब देखू रूप सलोना घनश्याम
अब मिट जाने दो बस
अब मिट जाने दो
ओ मेरे कन्हाई !
"तुम्हारी बंधिनी अनुभूति "
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