मेरे कोस्तुभ धारी !
के चरणों में
खुद को भी नहीं पता ,
पता हो तो भी स्वीकार करने की हिम्मत नहीं होती |
ऐसा भी होता हैं मेरे कन्हियाँ !
निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................
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