सोमवार, 28 फ़रवरी 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
तेरी तलाश
निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................
-
ये कविता किसी बहुत बड़े दार्शनिक या विद्वान के लिए नही है | ये कविता है घर-घर जाकर काम करने वाली एक साधरण सी लड़की हिना के लिए | तुम्...
-
गोकुल के घनश्याम मीरा के बनवारी हर रूप में तुहारी छवि अति प्यारी मुरली बजाके रास -रचाए | और कह ग्वालों से पट तो गै रानी अरे कान्हा , मी...
2 टिप्पणियां:
अच्छे भाव समेटे बढ़िया रचना .
यूपी खबर
न्यूज़ व्यूज और भारतीय लेखकों का मंच
सुन्दर रचना.
एक टिप्पणी भेजें