तुम और तुम्हारी आहटे,
मन के सारे दरवाजे खोल देती है
और
जी उठती हूँ मै एक बार फिर ,
खिलखिलाकर मुस्कुरा देता है जीवन
तुम्हारी आहटोको करीब पाकर .
मिलो के फासलों पे भी तुम्हारी खुशबू
मुझको विचलित कर देती है
अच्छा ,बुरा साथ और दुरी इन सब से दूर आ चुकी हूँ मै ,
तुम्हारे साथ चलते चलते इस अनजान डगर पे
और
अब कोई डर नहीं मुझको ,
क्योकि अब साथ हो तुम मेरे
याने खुद खुदा चला आया है मुझको थामने
और
मै बे खोफ बड़ चली हूँ तुम्हारी आहटो के करीब
क्योकि मै जानती हूँ
मेरे मन के मानस तुम ही दोगे मुझको अस्तित्व
तुम्हारी पत्नी .प्रेमिका ,या मीरा का स्नेह नहीं मेरे मन मै
मै तो एक खुली और साफ़ हवा के झोके की तरह
तुम्हे अपनी मुस्कुराहट
देना चाहती हूँ ,सदा की तरह ही |
2 टिप्पणियां:
bahut achi kavita he
जी उठती हूँ मै एक बार फिर ,
खिलखिलाकर मुस्कुरा देता है जीवन
http://kavyawani.blogspot.com
शालीनता में सजावट और शब्दों का जाल इसके अलावा मन का विचलन चिन्तन से छलावा !
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