हे मधुसुदन !
ऐसी काहे मोसे हट
मेरी इस काया में अब नहीं
ताकत की में और अपने को मिटा सकूँ
बंधी हूँ संसार से भी इसीलिए जरूरी हैं कुछ बंधन
दुसरो की सेवा के भी निभा सकूँ
जीवन हैं एक विपदा ,पर तेरे साथ के कारन ही में निभा सकूँ
तुम कहो मोहे पुकारो नहीं राधे मोहे
नहीं पुकारूं में ,मान तेरी बतिया
पर श्याम मेरे सब को समझा लूँ
इस आत्मा को केसे समझाऊं !
ये तो तेरी ही सुने ,माने ,साँसे ले
मुक्त कर दे अपने ही वचनों से मुझे
अब मर जाने दे ,जीवन न सही सुकून से म्रत्यु का आलिंगन तो होगा
सब कहते हैं थम जा जरा नया सवेरा आयेगा
चाहत किसे हैं जीने की जब पल न कटे तेरी सदा बिन
मेरे श्याम !
किसी को समझाना तो ठीक हैं
जिसके अधीन मेरा रोम -रोम वो नहीं समझे
तो क्या मांगू ,इस संसार में
खोल दो न अब मेरे माधव !
अपने बैकुंठ के द्वार
मुझे इस संसार से आने दो
मोक्ष दो प्रभु
वेसे ही सब कुछ तो तुमने मुझसे जुदा किया हैं
अब किसके लिए मुझे यूँ ही जिदा रखा हैं ,कभी तो म्रत्यु को मेरे द्वार आने दो न
गोविन्द !
श्री चरणों में तुम्हारी अनुभूति