ओ कान्हा !
हर बार रूठ जाओ तो मनाये राधा ,
इस बार रूठी जो राधा मना न सकोगे ,
हर बार तुमने गिराई हैं पगली की आँखों से
अश्रु धार , अबके माने नहीं राधा
तू बजाये मुरली कितनी ही,
न माने अब तो राधा
न माने अब तो राधा
तुम्हे श्याम अब तो साकार
रूप दिखाना ही होगा अपनी,
पगली राधा को मनाना ही होगा ,
न आये श्याम ,बनवारी तो इन ही चरणों में
पड़ी पड़ी दम तोड़ देगी तुम्हरी राधा रानी |
अनुभूति