शुक्रवार, 25 मार्च 2011

ओ निर्मोही


मेरे रोम रोम बसे श्याम ,
वो निर्मोही जाने न तड़प मोरी ,
पल -पल तडपे ये बावरी .

केसे कहू कान्हा  ,
तुमसे ओ निर्मोही ,

मेरे मन के आँगन में गूंजे तेरी सी बंसी 
काहे दीवाना करे ,तू बजाके बसुरिया 
फिर  मन की बात समझे न ,
दिन में उंनीदी ,
जगाए रात -रात भर तुम्हरी बतियाँ |

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................