रात बन बैठी है चाँद का घूंघट .
और इस चाँद केघूंघट में ,
राधा को इन्तजार
अपने कान्हा का ,
कि कान्हा आयेंगे
और उसके चाँद से मुख से घूंघट उठायेंगे .
इस आस में राधा करे इन्तजार
अपने कान्हा का ,
कर सोलह सिंगार |
वो कान्हा बड़ा निर्मोही ,
जब भी राह तके राधा ,
वो दे अंखियन को आंसू .
और जब आए सामने
राधा दे मुस्काय
ओ कान्हा
तेरी राधा बड़ी पगली ,दीवानी
तू काहे सताए करके मनमानी ,
ये रात नहीं आएगी दोबारा
कि कान्हा आज सजी है घूंघट में
तेरी चांदनी राधा |