सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

जिन्दगी एक खुली किताब

वर्षो  से अपने आप को खुशियों की चाह में अपने ही शब्दों से दूर रख रही थी ,लेकिन आज दर्द जीत ही गया और मेने अपने शब्दों  को फिर थाम लिया |
मेरे शब्द
मेरी तन्हाई और मेरे अहसासों के ये ही निस्वार्थ साथी हैं ये कभी मुझे कोई अपेक्षा नहीं रखते में इन्हे केसे भी अपनी भावनाओं के साथ जोड़ दू ,चाहे वो ख़ुशी का गीत हो या दर्द की बांसुरी |

आज से एक नया ब्लॉग लिखना शुरू किया हैं  जिन्दगी एक खुली किताब   
दोस्तों ये मेरे लिए ब्लॉग नहीं जीवन की वो सारी सच्चाई हैं जिससे में कही भागना चाहती थी , लेकिन आज  में उससे सामना करने को तेयार हूँ| 


आज तक समझ नहीं पायी दुनिया की सच्चाई को |क्या सच हैं जो दिखाई  देता हैं ?या वो जो महसूस होता हैं |
सब कुछ इतना  शुगर- कोटेड  हैं की बस ,हाँ पर अब हजम नहीं होता |

http://jindgiekkulikitaab.blogspot.com/

नारी


(चित्र:साभार गूगल )
नारी
एक देह, एक-मन, एक आत्मा
एक स्वपन ,    
एक जिKkसा
तुम उसे मत कहो पहेली
वो जो एक उत्तर है
पहेलियों का
विश्वासों की नाज़ुक ढोर पर
सधी हुई समर्पित
नारी
जो
प्रेम की एक "बदली" की से भीग
बदली बदली
भूल जाती है बचपन की गलियां
मां-पिता की द्वार-देहरी सब
काश
तुम तुम और तुम भी…!!

Ø  अनुभूति

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................