बुधवार, 23 नवंबर 2011

मुस्कुराते हो ना सदा ही मुझे रोते देख ..




मेरे माधव ! 
मुस्कुराते हो ना सदा ही मुझे रोते देख ..
मेरी आंहो मे दर्द 
और आँखों मे देके रात भर का ये नीर 
देके मुझे मुस्काओ ,
तो हंस के स्वीकार हैं 
जीवन के सारे दर्द 
मेरे कृष्णा !
सदा मेरे अंतस को चीर तुम मुस्काओं 
ये प्रीत की रीत अनोखी तुम ही निभाओं 
जो तुम संग बाधी आत्मा की ये डोर 
तो केसे तुम्हारी बन्धनी तुम कुछ कह जाएँ 
मेरे माधव ! 
मुझे तेरी एक मुस्कुराहट को ये सब स्वीकार 
ये नीर भरे ,सजल नयन करते हैं 
सदा की तरह ही तुम्हारे चरणों मे 
आत्मीय प्रणाम
श्री चरणों मे तुम्हारी अनुभूति







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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................