कब मिलेगी मुक्ति ?
तुम्हे पुरुष की वासनाओ से!
कब बाहर आकर देख सकोगी तुम
आखिर कब तक तुम सहती ही रहोगी ,
कब तक इन्तजार करती रहोगी
कभी तो एक दिन करना होगा सामना तुम्हे
इस दुनिया का ,इस भीड़ का
एक दिन तो तुम्हे करनी होगी
इस संघर्ष की शुरुवात न ,
न की तुमने वासनाएं पूरी ,
तो कोई नहीं ढोयेगा ये तन
समझती क्यों नहीं ?
इस दुनिया में बदले में ही,
कुछ मिलने का रिवाज हैं
तुम्हारी आत्मा का कोई पर्याय नहीं यंहा
तुम लाख छलनी हो ,
तुम्हारा जिस्म जरुरी हैं ,
तुम्हारी सेवा के बदले
पाल तो रहा हैं वो पुरुष तुम्हे
अब जिस दिन मन भर गया तुमसे
वो ले आयेगा एक खुबसूरत जिस्म
और एक बच्चे पैदा करने की मशीन
ढो सकोगी ,ये सब साथ -साथ
ये तुम्हारी दुनिया नहीं
तुम तो शक्ति हो , अपने अंतस में झांको
और देखो कितना कुछ छिपा पडा हैं यंहा
सामना करो खुद का ,
एक बार स्वार्थी बन जियो तुम
हां अपने लिए !
"अनुभूति "
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