"नारी ईश्वर की सबसे अनुपम कृति हैं |"
शायद किसी पुरुष ने ही लिखा होगा ,
और इस अनुपम कृति का सबसे ज्यादा ,
तिरस्कार , उपभोग और दुर्दशा भी उसी पुरुष ने की हैं |
ईश्वर तुमने तो बनाया उसे स्नेह ,समर्पण
और त्याग की मूरत ,
तुमने एक मिटटी की गुड़ियाँ को बना
कर उसमे डाल दिए ,
इतने सारे गुणों के प्राण ,और खड़ा कर दिया
संवेदहीन पुरषों के बीच
,कभी माँ ,कभी बेटी कभी पत्नी ,
और कभी प्रेयसी बनाकर ,
तुमको थोड़ी भी दया नहीं आई ईश्वर!
तुमने पुरुष की सारी कमजोरियों का जिम्मेदार ,
उसे ही बना दिया सदा एक पल में ,
तुम ही ने तो एक पल में कहलवाया
"नारी तुम श्रद्धा हो |"
और एक तरफ त्रिया चरित्र का कलंक ,
कोई भी उस माटी की गुड़ियाँ के अंतस में उतरकर
समझ पाया उसकी मासूमियत को ,
उसकी नाजुक सी अन्दर ही अन्दर दम तोडती मुस्कुराहट को |
अनुभूति
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