शुक्रवार, 27 मई 2011

ज्ञान का समन्दर

ओ कान्हा जी ,
आप तो चौसठ कलाओं के ज्ञाता ,
एक - एक भी सीखी प्रभु तो 
चौसठ जनम लेना होंगे ,
तेरी लीलाओं को समझने के लिए,
मुझे अभी कई जनम और लगेंगे प्रभु !
एक भागवत ही नहीं अभी समझ नहीं आई 
कोनसी कृष्ण लीला समझ आएँगी मुझे
प्रभु! 
आप  तो ज्ञान का समन्दर और
में नन्ही सी बूंद 
पता नहीं कँहा खो जाउंगी इस समन्दर में
थोड़ा -थोड़ा ही सही,
सीखना चाहती हूँ सब कुछ
बस ये ही में जीवन में  कर सकती हूँ|
में अल्प बुद्दी ,अज्ञानी प्रभु !
तेरा नाम लेने के सिवा मुझे आयें न कोई और काम |




अनुभूति

कोई टिप्पणी नहीं:

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................