जो सोचा नहीं था
जिंदगी ने वो गीत गुनगुनाया ।
कोई खाब आँखों में जब रहा नहीं
ये खाब सजाने कोई
क्यों अजनबी बनकर अपना आया।।
अनुभूति
रविवार, 12 अप्रैल 2015
तुम को देखा तो ये ख्याल आया ।
सोमवार, 30 मार्च 2015
तुम साथ हो
जब भी आँखे बन्द कर तुम्हे पुकारती हूँ
तुम सामने खड़े कहते हो
साथ ही खड़ा हूँ पगली
क्यों घबराती है
क्या विशवास नही अपने गोविन्द पर
पिया, एक तुम्ही पे तो हर स्थिति में मुझे अगाध विश्वास है
बस विचलित होती हूँ
प्रति क्षण बदलते समय से
तुम साथ बह रहे हो
बस इसिलए जी रही हूँ
प्रतीक्षा कर् रही हूँ
द्रोपदी की तरह की
तुम जरूर आओगे ।
पुकारती तुम्हे तुम्हारी अनुभूति।।
रविवार, 29 मार्च 2015
तुम बिन
पिया जी ,
लोग कहते हैं.……विरह कि अग्नि में स्नेह और दीप्त होता हैं।
अपना होश नहीं होता सब अद्वेत होता हैं…………
लेकिन जंहा तुम नहीं होते वंहा कुछ नहीं होता……
तुम्हारी बंशी कि धुन के बिन सारा जग सुना हैं.......
इसी तन्हाई में तुम्हे पुकारती....... तुम्हारी रसात्मिका
श्री चरणों में तुम्हारी अनुभूति
सदस्यता लें
संदेश (Atom)