गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

तेरी तलाश




निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा
हुआ जो सामना एक दिन आईने से ,
पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ...............
अनुभूति

है इन्तजार , मेरे माधव आयंगे !


मेरे माधव !
विरह के दिन बीते
सजी हैं आज राधा सजन के दर्श ,
दूर से कही आती मुरली की धुन
और करे खनकते पायलो को विभोर
,बावरी इत-उत खोजे बाँट निहार
जो कदमो की आहट हो कोई ,
दीवानी उसी और भागी जाए
दिल कहे प्रियतम आयेंगे ,गायेंगे
ले अपने मधुर स्नेह आलिंगन में
अपने होठो की मधुर मुरली की धुन कानों
में घोल
अपनी असीम प्रीत की एक मोहर
इस आत्मा पे छोड़ जायंगे
.देख माधव तुझे में अपने से ही लजाऊ
में मरकर भी तेरी प्रीत निभाऊं
तेरी अद्भुत प्रीत का सागर
न शब्दों से में कह पाऊं
न बोल के बतलाऊं
तेरी प्रीत झलके मेरे कुमकुम ,
मेरी चूड़ियों की खनक
और पायलो की छमछम के सुरों में
है इन्तजार मेरे माधव आयंगे
ले अपने हाथो में हाथ
इन कंगनों से खेलते जायेंगे
मेरी इन आँखों से बरसती प्रीत
अपने अधरों से पी जायेंगे
हां सजी हैं आज राधा अपने प्रियतम के दर्श ,
करती हैं इन्तजार प्रियतम आयेंगे
भावविभोर ये आत्मा का वंदन स्वीकारो
सर्वस्व समर्पण तुम्हरा,
तुमको ही मेरे
तव चरणों में
अनुभूति


बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

तेरी असीम प्रीत का ये अमृत




मेरे माधव !
विरले ही इस संसार में कोई तेरी ऐसी प्रीत को पाता होगा !
में
इन आँहो में दर्द और आँखों में आसूं लिए भी अद्भुत सुख की धनी हूँ जो मेरे श्याम तुने इस पवित्र प्रीत को थामा हैं ........बस मुझे युही थामे राखियों इस भव -सागर ,मै पल -पल खुश हूँ क्योकि में तेरी और हर कदम ,हर श्वास बड रही हूँ
तेरा ही अंश हूँ और तुझमे ही घुलती चल रही हूँ
मै तुझमे हूँ और तू मुझमे
ये ही रसात्मिका का जीवन हैं ,,,,,,,,,,,,मेरे माधव !
मेरा ये स्नेह नीर केसे तुझे समझाऊं !
न चूड़ी ,न पायल ,न मांग सजाऊं
फिर भी में तेरी सुहागन कहलाऊं
अहसास करुण रुदय का मुझे तुम्हारे
मेरे मुकुंद माधव !
इस सरल स्नेह सादगी पे हो बलिहारी
में इस जीवन में विरह को पाकर भी हो गयी
तेरी अखियन को प्यारी
जो बसी हूँ तुहारी इन अखियन में बन मीरा
तो क्यों खोजूं दुनिया की मिथ्या प्रीत
तेरी असीम प्रीत का ये अमृत ,
केसे तुझको दिखलाऊं !
में जानू तेरा पल-पल मिटना ,जलना
इसिलए लडती ,मरती तुझसे ये अद्भुत प्रीत निभाऊं
रोज लडूं तुमसे ही मेरे माधव !
पर तू कुछ न कहे
अंतस में अपने नीर बहा
होठो पे पत्थर की कठोरता सजा ले
में मिटने को जनम तुझपे हारी हूँ
हां ,तेरी सरलता सादगी और मुरली की धुन की में दीवानी
में पगली !
तुझे अपने से बड़ा पगला प्रेमी मे मानु
करू कोटि -कोटि नमन
मेरे श्याम ,इन चरणों में
इस पगली का बीते जीवन
यूँही अपनी श्वासों पे ले तेरा नाम
मेरे मधुसुदन !
मेरे माधव !
मेरे राम !
श्री चरणों में अनुभूति

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

मेरा एक सहारा तू ही ,मेरे श्याम !


मेरे माधव !
तुम बिन मन को थाह नहीं ,
नहीं बुझे आस ये रूह की ,
जितना में तिल -तिल ज़लू
उतना ही और में तेरे स्नेह को तडपती जाऊं
जीवन मेरा तपस्या बना दिया तुने
मेरे श्याम !
तुम बिन शब्दों की वीणा सुनी
तुम बिन सुने पड़े रहते ये प्राण
तुम छेड़ अपनी मुरली की सरगम,
हमें भूल जाओं
पर ये बावरा मन
तेरी एक हर आह पड़ता जायं
तू कहे न मेरे मधुसुदन
और में कहके तेरा मन दुखाऊ ................
मेरी ये दुष्टता क्षमा करना
तुझ बिन में ये शब्दों की वीणा न छेड़ पाऊं
तुझसे जोड़ी एक बार फिर
नित चरणों में नमन की ये रीत
स्वीकार नमन ,
निभाने दे ये रीत
मेरा एक सहारा तू ही
मेरे श्याम !
और कोई न जाने मेरे मन की ये प्रीत
तेरे चरणों में जीवन वारा
अब क्या हैं भला बुरा हमारा
दो इतनि अपने स्नेह की शक्ति
की मिटने की हो इसमें शक्ति ,,,,,,,,,,,
श्री चरणों में नमन
अनुभूति

सोमवार, 16 जनवरी 2012

मेरे माधव !
तेरे असीम स्नेह का आनंद
बहे मेरी इन अखियन से ,
किसको कहूँ ये अश्रु नहीं 
बह गया हैं मेल सब मन का ,
बह  गये हैं जीवन के सारे पाप 
अश्रुओं में
मे  तेरे इस असीम स्नेह की
दिव्यआनंद अनुभूति में
डूबी  हैं तेरी ये अनुभूति मेरे माधव !






गुरुवार, 12 जनवरी 2012

हे ! अंतरयामी








मेरे कृष्णा ! 
हुयी नहीं ऐसी कोई भोर जब इस आत्मा ने ना
किया हो तेरे चरणों में 
इन भीगी अखियों से पखारते तुझे प्रणाम .
मेरे प्रभु ! 
जेसा तू देता गया जीवन में हर क्षण में ,
मैं कभी हँसते हुए कभी रोते हुए सहती ही रही ,
मैंने नहीं  मांगी तुझसे दुनिया की तरह कोई 
बड़े -बड़े सपनो और खजानों की खाइश 
सुनती थी तुझे पुकारो आत्मा से तू बैकुंठ छोड़ चला आता हैं 
अब तो छलनी हैं मेरा रोम -रोम 
हार चुके हैं ये भीगे नयन
रोती-रोती  भी मेरी आत्मा तुझे पुकारती हैं 
भयभीत  हैं मेरा रोम -रोम ,
छलनी हैं अंतस 
किस घडी तक और होगी 
मेरे कृष्णा ! 
मेरे आराध्य !
मेरे माधव !
मेरी ये परीक्षाएं 
ये संसार तो सिर्फ स्वार्थ ही खोजा करता हैं मुझमे 
तो तो सब जानता हैं 
अंतरयामी हैं ना 
हर आत्मा का स्वामी हैं ना 
फिर काहे को ,
मेरी आत्मा की निस्वार्थ भक्ति
से दूर तू कंहा खोया हैं 
मुझे काहे नहीं ले चलता संग अपनी दुनिया में 
अपनी भक्ति के अपने रूपों के आनंद में 
कथाओं के माधुर्य में,
मेरे कृष्णा ! 
मुझे नहीं समझ आएगी
तेरी ये दुनिया 
आत्मा में कुछ और लबो पे कुछ और
जेसे लोगो से बनी दुनिया 
मुझे ले चल अब संग अपने 
हाँ अपने बैकुंठ 
मे करना चाहती हूँ 
पग पखारना चाहती हूँ
तेरे मेरे माधव !
मेरे श्याम !
मेरे राम !
श्री चरणों में अनुभूति























शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

मौसम


मेरे माधव !
घटा बन के बरसूं मैं ,
या राहों में तुम्हारी बिछ जाऊं
बोलो मेरे माधव !
किस तरह तुम्हारी भक्ति में निभाऊं
ना जानू ,
मैं कोई पूजा ना पाठ
मुझे सिर्फ तेरा नाम लेना याद
ये फिजा ये घटाएं आज मुझपे हैं मेहरबान
क्यों ना में आज अपने कृष्णा संग रास रचाऊ
श्री चरणों में अनुभूति

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................