मंगलवार, 22 मार्च 2011

मेरे राम


मेरे राम , मेरे आराध्य ,

जब भी ये आत्मा कराह उठती है ,
मैं चली आती हूँ तुम्हारे कदमो में ,


और हर बार तुम,
एक विशाल आत्मा के ,
अधिपति बनकर मुझे ,
और मजबूती से खड़ा कर देते हो|

और खीच लेते हो अपने चरणों में ,
 बह उठती है इन आँखों से अश्रु धार,
तुम्हारे चरणों को,
अपने अश्रुओं से धोने के लिए .

मेरे राम 
मेरा सारा दर्द ,सारी वेदना 
तुम्हारे मेरे मस्तक पर हाथ रखते ही 
चली जाती है .

और सिर्फ रह जाती है ये अश्रु धार, 
तुम्हारे कदमो को अपनी निष्पाप भक्ति से धोने के लिए |
कभी लगता है आज भी मेरी भक्ति में ,
श्रद्धा में कोई कमी तो नहीं ,
जो तुम देते हो ये अश्रुधार 
इन आँखों को ,

मेरे राम , मेरे आराध्य 
मेरे पास तेरी भक्ति के खजाने के सिवा
कुछ भी नहीं 
इसलिए मुझे सदा तुच्छ जान 
आशीष देता रह |

मेरे भगवान , मेरे राम 
इन आँखों में ये अश्रु न रहें तो कैसे 
धो सकूंगी तेरे चरणों को ,
मेरे राम ,

इसलिए मुझे दर्द दे ताकि निकलती रहे आह
और में सदा बनी रहूँ , 
तेरे करीब , इन चरणों में 

मेरे राम , 
मेरे आराध्य

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................