गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

मेरे कृष्णा !तू छिपा हैं कँहा ,

मेरे कृष्णा !
ये रोती अखियाँ तोहे पुकारे
तू छिपा हैं कँहा ,
में कँहा ?
किन चरणों में बैठ करू तुमसे बतियाँ
खोल दो ,
इस रसात्मिका पे लगे बंधन
में अरज करू !
तुझसे सिर्फ इतनि ही ब्रज- नंदन
मेरे जीने की वजह एक तुम
तुम्हारे चरणों का नित वंदन
ऐसी काहें कठोरता ओडे हो
मेरे कृष्णा !
तुम बिन सुनी पड़ी हैं रसात्मिका !
श्री चरणों में सुन लो कभी तो
मेरी एक पुकार

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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................