सोमवार, 12 सितंबर 2011

मेरे गिरिधर ! तुम्हारा ये चाँद,

मेरे कृष्णा !
इस रात की बाहों में ये खुबसूरत चाँद ,
और तुम्हारी  धवल आत्मा की  पनाहों मे
  तुम्हारा ये चाँद, 
 दोनों बेहद खुबसूरत हैं ,
अपने -अपने  मालिको की पनाहों मे
ये दिव्यआनंद अनुभूतियाँ और भी खुबसूरत बना देती हैं मुझे 
   तुम्हारी पनाहों मे,
मेरे कोस्तुभ स्वामी !
ये चाँद लजाता हैं बादलो  की ओट से 
        और मे लजाती हूँ तुम्हारी धवल आत्मा ओट से 
,मेरे रुखसार से हटता घुंघट और कृष्णा तुम्हारी छबी 
    से गिरता आलोक और भी दिव्यता दे देता हैं मुझे,
  और मे अश्रु पूरित अपने असीम अनुराग 
 को सामने देखकर  नतमस्तक पड़ी होती हूँ
  तुम्हारे श्री  चरणों मे 

          जानती हूँ दुनिया के सारे कडवे सत्य ,
 फिर भी तुम्हे साथ पाकर
  और भी मजबूत खड़ी हो जाती हूँ इस दुःख के सामने,
  और सच कहू तो कृष्णा ,
     अब तो तुम्हारे असीम अनुराग  के आगे 
   दुःख भी हार गया हैं,
    और मेने भी अब तुम्हारी ही तरह 
  चैन की बंसी बजाना सीख लिया हैं
            हां इस पूर्णिमा के चाँद की  धवल चांदनी की तरह ,
 बरसते असीम अनुराग मे .
में भी खिली हूँ आज 
   तुम्हारी आत्म आनंद अनुभूतियों मे
   पूनम का चाँद बनकर महीनों के
   बाद तुम्हारी  पनाहों  मे 
कोस्तुभ धारी !
  मेरे कृष्णा !
मेरे माधव !
 मेरे गिरिधर ! 
 मेरे गोविन्द !


श्री चरणों में अपने श्याम के 
अनुभूति


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तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................