रविवार, 14 अगस्त 2011

क्या करू तुझपे न्योछावर !मेरे कृष्णा !




मेरे कृष्णा !
जब से समाई हैं इस आत्मा में वो धवल मूरत तुहारी
में खोयी सलोने तेरी मीठी मुरली में
सोचती हूँ, देखती हूँ तो इन आँखों से बहती हैं तेरी प्रीत अनोखी
कही मेरी ही नजर न लग जाए
मेरे कान्हा तोहे
ये सोच के जी भर भी देख नहीं पाती में श्याम
क्या दू तोरी स्नेहिल आत्मा के सदके में
मेरी साँसों पे, जीवन के हर एहसास, पे तोरी तो हुकूमत हैं
फिर क्या करू तुझपे न्योछावर !
ये सोच -सोच के ही में मरी जाऊं
मेरे कृष्णा !
सब कुछ तेरा तुझको अर्पण किया इस बावरी ने
कुछ नहीं मेरा ,
जानती हूँ दुनिया मुझे कहे पगली
पर श्याम मेरे तुम न कहो मुझे
पगली ,
हां मेरे श्याम तुम आये थे
भीष्म के संद्शे पे भी आओगे एक दिन
जब में भी हो जाउंगी भीष्म की तरह अपने रोम -रोम से छलनी
और ले जाओगे अपने साथ
अपनी इस बावरी चरण दासी को
अपने बैकुंठ
कर दोगे मुझे इस संसार के मिथ्या भ्रमो से मुक्त
दोगे मेरी प्रीत को नया नाम
इसीलिए तो में बलिहारी कान्हा तुझपे
मेरे श्याम !
मेरे मुरलीधर !
श्री चरणों में अनुभूति


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