तुम्हारे सच के लिए लड़ती ही जा रही हूँ ,
कैसे कह दू की ऐ जिन्दगीं,
में तुझे भूली जा रही हूँ|
हाँ क्योकि मुझे तुम्हारे शब्दों के सच से प्यार हैं |
जिन्दगी और मौत से अब कोई सरोकार नहीं मुझे ,
लेकिन तेरे सच पे ,कोई और तो ठीक हैं मेरा मन भी इल्जाम दे ये भी गवारा नहीं मुझे ,
मे तो हूँ उनमे से लड़ती रहूंगी ,तेरे सच के लिए ,
तेरे शबदो के सत्य के लिए , तेरे विशवास के लिए ,
क्योकि मेने अब जाना मेरी जिन्दगी भी बनी हैं ये तेरी इबादत के लिए |
हाँ क्योकि मुझे तुम्हारे शबदो के सच से प्यार हैं |
मेरी सांसे और तुम्हारे स्मृति पटल पे अंकित शब्द एक दुसरे से लड़ते हैं यूँ
सांसे कहती हैं छोड़ मुझे , वो झुटा हैं यूँ
और शब्द कहते हैं कही तो मजबूर हैं वो यूँ
अगर मेरे खुदा झुटा हैं तू ,
तो मेरा तडपना , तेरे लिए जिन्दगी से भी बड़ी सजा होगी ,
क्योकि अब न दे सकेगा तू किसी के स्नेह को स्वार्थ और सहानुभूति का नाम ,
इससे बड़ी और क्या सजा होगी तेरे लिए होगी|
हाँ क्योकि मुझे तुम्हारे शब्दों के सच से प्यार हैं |
खेलता मैदान ऐ जंग में किसी दुश्मन से तो बात ही कुछ और होती ,
जो तुझे जान भी न पाया कभी उसके मासूम दिल से खेल जाना कँहा से बड़ी बात होगी |
जिन्दगी भर ये मेरी ये साँसे दुवाएं देंगी तुझे ,
ये ही मांगेगी वो अपने मालिक से की तुम जहा रहो बन के खुदा इस जँहा में जियों ,
हाँ क्योकि मुझे तुम्हारे शब्दों के सच से प्यार हैं |
मेरी इस हाल के जिम्मेदार तुम नहीं ,
वो हर लम्हा - लम्हा हैं जो इन सांसों ने साथ गुजरा हैं ,
वो हर आतम आनंद अनुभूति हैं जो आत्मा में बसी हैं ,
स्मृति पटल पे अंकित वो शब्दही हैं ,
हाँ जो मुझे आज भी ज़िंदा रखे हैं ,
हाँ क्योकि मुझे तुम्हारे शब्दों के सच से प्यार हैं |
अनुभूति
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