शनिवार, 21 मई 2011

कित हो अंतर ध्यान !

मेरे गिरिधर गोपाल ,

कित हो अंतर ध्यान ,
राधा ढूंढे तुम्हारे संग को , 
खोजती फिर रही घट -घट|
तुम्हरे अधरों की वो मधुर मुस्कान |
श्याम -सलोना सरल रूप तुम्हरा 
हो तीनों  लोको के नाथ फिर  भी खड़े रहो हो सदा
दुखी , अबला ,असाहायों के साथ ,
तुम्हारी ये सरल छबी देख ,
मीरा भी हो गयी दासी 
और हँसते - हँसते पी गयी , 
विष प्याला मनमानी ,
मीरा नहीं तोड़े अपनी सीमा 
तुम्ही चले आओ सीमाओं  को तोड़ कर प्रभु !
और कर दो जीवन को एक पल देकर 
चरण सेवा का अधिकार .
एक बार , एक पल में जीवन हो जाएगा 
धन्य ,कृतार्थ और सदा के ,
लिए आप के श्री चरणों से अंकित
अपने श्याम की
अनुभूति


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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................