मेरे गिरिधर गोपाल ,
कित हो अंतर ध्यान ,
राधा ढूंढे तुम्हारे संग को ,
खोजती फिर रही घट -घट|
तुम्हरे अधरों की वो मधुर मुस्कान |
श्याम -सलोना सरल रूप तुम्हरा
हो तीनों लोको के नाथ फिर भी खड़े रहो हो सदा
दुखी , अबला ,असाहायों के साथ ,
तुम्हारी ये सरल छबी देख ,
मीरा भी हो गयी दासी
और हँसते - हँसते पी गयी ,
विष प्याला मनमानी ,
मीरा नहीं तोड़े अपनी सीमा
तुम्ही चले आओ सीमाओं को तोड़ कर प्रभु !
और कर दो जीवन को एक पल देकर
चरण सेवा का अधिकार .
एक बार , एक पल में जीवन हो जाएगा
धन्य ,कृतार्थ और सदा के ,
लिए आप के श्री चरणों से अंकित
अपने श्याम की
अनुभूति
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