गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

दिव्यानंद अनुभूति

मेरे मालिक क्या मांगू तुझसे अब ,
जो दे दिया
एक पल में तीनो लोको का संसार 

आँखे फुट पड़ी हैं ,थमती नहीं मेरी 
इससे बड़ा सुख संसार में क्या होगा ?
मेरे प्रभु 
किस बंदगी से चूका सकुंगी ये उपकार तेरा |
मेरे लिए इतना कुछ लिख रखा था विधाता |
किस मुख  को तेरी और रख देखू 
मेरे मालिक !
ये केसी दिव्यानंद अनुभूति हैं जीवन की ?
जिसने एक ही पल में बदल दिया मेरा संसार |
तुम्हारी सरलता और सादगी पे मुग्ध हूँ मेरे कृष्ण - कन्हियाँ .
बिना मेरे शबदो से ही,
पड़ लिया संसार  अनुभूति का |
अभिभूत हूँ बस 
आज शब्द भी बहुत छोटे पड़े हैं तेरे मन की विशालता को समझने के लिए |

आज देखा हैं तेरा ये विराट और भव्य रूप मेने मेरे श्री हरी 
धन्य कर दिया तुने ये जीवन |
सजा दी सदा के लिए मुस्कुराहठे 
मेरे इन लबो पे |


"तुम्हारी अनुभूति मेरे श्री हरी !"



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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................